Karpoori Thakur Jayanti: बिहार की राजनीति के सबसे नाम चिन प्रमुख मुख्यमंत्रियों में से एक जननायक कर्पूरी ठाकुर का आज जन्म जयंती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें इस मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। 26 जनवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा Karpoori Thakur को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
Karpoori Thakur Biography in Hindi गणतंत्र दिवस के दो दिन पहले यानी 24 जनवरी को बिहार की राजनीति के जननायक रहे Karpoori Thakur जी का जन्म जयंती मनाया जाता है। और गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2024 को उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर ने सामाजिक न्याय को हमेशा आगे रखते थे और इस पद्धति से बिहार की आम जनता उनसे काफी प्रभावित रहती थी। Karpoori Thakur का ऐसा विचारधारा था कि समाज के हर उस व्यक्ति को न्याय मिलना चाहिए जो हमारे परिवार का हिस्सा है। आपको बता दे की Karpoori Thakur “नाई” समाज से आते थे। और इनका समाज आज भी इन्हें भगवान की तरह मानते है। Karpoori Thakur एक ऐसे जननायक थे जिन्होंने समाज सुधारक का कार्य किया और अपने देश और प्रदेश का नाम रोशन किया इनके इन प्रयासों को आज भी लोग याद करते हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उस समय उन्होंने अपने शिक्षा की कुर्बानी दे दी अर्थात इस दौरान उन्होंने स्नातक की पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए।
भारत को स्वतंत्र होने के बाद उन्होंने अपने ही गांव में शिक्षक के तौर पर कार्य किया। सोशलिस्ट पार्टी से उनका जुड़ाव था और वह 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के तौर पर उम्मीदवार बनाए गए थे उस दौरान उन्हें ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित किया गया था। कर्मचारियों के साथ हो रहे अन्यायों के खिलाफ वह हमेशा डटकर खड़े रहते थे, इस दौरान 1960 में भारत सरकार के विरोध में हड़ताल पर भी गए थे, और इस दौरान उन्हें जेल भी भेजा गया था। उसके बाद उन्होंने मजदूरों की आवाज को उठाते हुए कई आमरण अनशन भी किए थे।
Karpoori Thakur का जन्म 24 जनवरी सन 1924 को बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले में एक छोटे से गांव में हुआ था। आज उस गांव का नाम बदलकर “कर्पूरी ग्राम” कर दिया गया है। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता का नाम रामदुलारी देवी था कर्पूरी ठाकुर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे, और उन्होंने उनके गुण को सीखते हुए उनके पदचिन्नो पर चलने का प्रयास किया। वह नाई जाति से आते थे। कर्पूरी ठाकुर सरल सादगी पूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। और वे एक साहसी व्यक्ति भी थे, इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। और भारत में लगे इमरजेंसी के दौरान उन्होंने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को घेरते हुए उनका विरोध भी किया था। स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई के लिए इन्हे लगातार 26 महीनों तक जेल में रहना पड़ा था। उनके कार्यशैली की बात करें तो शिक्षण पद्धति को सुधारने के लिए उन्होंने काफी बड़े पैमाने पर कार्य किया था। राजनीतिक जीवन की बात करें तो कर्पूरी ठाकुर बिहार राज्य में दो बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री पद के तौर पर कार्य कर चुके थे। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक मुख्यमंत्री पदभार संभाला था और वहीं दूसरी बार उन्होंने 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक हुए बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।
जननायक Karpoori Thakur का जीवन शैली बहुत ही सादगी पूर्ण रहता था वह मुख्यमंत्री रहते हुए भी कभी भी ऐसा किसी के साथ व्यवहार नहीं किया जिससे किसी को ठेस पहुंचे, वह एक उच्च पद पर आसीन होने के बाद भी मृदुभाषी व्यति थे। उनका ऐसा विचारधारा था और उनकी एक ऐसी जीवन शैली थी जिससे लोग काफ़ी प्रभावित थे, और लोग उनसे जुड़े रहते थे। इनके साथ जो भी कर्मचारी काम करते थे वह लोग उन्हें आज भी याद करते हैं, Karpoori Thakur जी एक ऐसे विशुद्ध नेता थे जिन्होंने कभी भी सरकारी पैसे का दुर्पयोग नहीं किया, वे अगर कोई पैसा खर्च करते थे तो अपने पास से करते थे। और जितना रहता था उसमें ही अपना काम चलाने की कोशिश करते थे, उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं किया कि कोई कहीं बड़े प्रोग्राम में कहीं बड़े फंक्शन में वह कुछ खर्च कर दे या कोई उपहार गिफ्ट दे दे और सरकारी खाते से उसका भुगतान कर दिया जाए उनकी उस कार्यकाल में या उनके पूरे उसे जीवन काल में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने सरकारी पैसों का दुरुपयोग किया हो।
बिहार के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर Karpoori Thakur जब वह पद पर बैठे थे उस समय कैबिनेट द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया कि राजनेताओं के लिए या मंत्रियों के लिए एक ऐसी कॉलोनी बननी चाहिए जो सरकार की तरफ से बनाई जाए, उन्होंने इसकी स्वीकृति तो दे दी लेकिन खुद के लिए ऐसा कोई भी बांग्ला कोई भी जमीन उन्होंने नहीं लिया जो की सरकारी खजाने से खर्च कर बनाई गई हो।
साल 1988 का वह दिन था जब कर्पूरी ठाकुर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए यानी उनका देहांत हो गया, उसके बाद सभी मंत्री मिनिस्टर सभी बड़े लोग उनके पैतृक गांव में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा होने लगे इस दौरान सभी ने उनके घर की तरफ देखा तो सब आश्चर्यचकित रह गए और उनके आंखों से आंसू बहने लगे मंत्रियों ने देखा कि बिहार का एक ऐसा मुख्यमंत्री जो सबके लिए अपनी जान देने के लिए हाजिर रहता है उसके पास एक पक्का मकान तक नहीं है। उनकी दैनिक स्थिति देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित थे और सभी की आंखें नम हो गई कुछ लोगों ने यह भी कहा बिहार का यह लाल कभी भी अपने लिए कोई भी ₹1 नहीं खर्च किया। यही कारण था कि जननायक कर पूरी ठाकुर जी के पास कोई भी पक्का मकान नहीं था।
बहुत ही मजेदार घटना कर्पूरी ठाकुर जी से जुड़ी हुई है जब वह बिहार राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभाला था। इस दौरान देश में जनता दल की सरकार थी और इस समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन भी था। इस मौके पर सभी देश के बड़े नेता एकत्रित हो रहे थे उनके जन्म दिवस को मनाने के लिए इसी कड़ी में Karpoori Thakur जी भी शामिल थे, इस दौरान वह फटा हुआ कुर्ता पहनकर ही इस सभा में पहुंच गए थे, चंद्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री) ने उन्हें देखा और उनसे हाल-चाल पूछा, इस दौरान उन्होंने अपने ही अंदाज में वहां पर उपस्थित सभी नेताओं से अपील की कि वे थोड़ा बहुत कंट्रीब्यूशन करें थोड़ा बहुत दान करें ताकि कर्पूरी ठाकुर जी के लिए एक कुर्ता बनाया जा सके, लेकिन Karpoori Thakur जी एक ऐसी सादगी पूर्ण जीवन बिताने वाले व्यक्ति थे जिन्होंने उसे पैसे को भी मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।
Karpoori Thakur सामाजिक न्याय की पक्षधर थे उनके बहुत से ऐसे कार्य आज भी याद किए जाते हैं जो की सामाजिक समरसता को बनाए रखना सामाजिक सुधार को हमेशा प्रथम बिंदु पर लेकर चलने वाले नेता थे। Karpoori Thakur ने समाज सुधार के लिए सबसे बड़ा प्रयास किया था। इसलिए उन्हें “जननायक कर्पूरी ठाकुर” के नाम से संबोधित किया जाने लगा। उनकी यह सोच थी की सरकार की जितनी भी योजनाएं चल रही है वह समाज के हर उसे व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए जो इसका हकदार हो। अर्थात इन सब चीजों की वह बहुत ही गहराई से देखरेख करते थे। गरीबी हटाने के लिए उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए जो उस समय के तत्कालीन सरकार में किए गए थे, कर्पूरी ठाकुर एक गरीब समाज से आते थे उन्होंने गरीबी क्या होती थी नजदीक से देखा था। इसलिए वह हमेशा समाज के हर उस वर्ग की बात करते थे जो सबसे पिछड़ी पंक्ति में खड़ा हो और यह भी सुझाव देते थे कि सरकार द्वारा कैसे उन्हें ऊपर उठाए जा सकता है।
जब पूरे भारत में कांग्रेस का शासन था हर राज्य में कांग्रेस की सरकार थी उस समय भी Karpoori Thakur ने कांग्रेस के स्वर में बोलना पसंद नहीं किया। उन्होंने इसलिए उनका विरोध करना प्रारंभ किया क्योंकि उनका ऐसा मानना था कि कांग्रेस अपने विचारों से भटक गई है अर्थात हमारे विचार और कांग्रेस पार्टी के विचार कहीं कभी भी मेल नहीं खा रहे है। इसलिए वह उनका सर्वव्यापी विरोध करते थे।
इस महान जननायक Karpoori Thakur का राजनीतिक कैरियर सन 1950 में प्रारंभ होता है। वे मजदूरों श्रमिकों और छोटे-मोटे किसानों की समस्याओं को गहराई से समझते थे और यही कारण था की वो समय समय पर आवाज़ बुलंद करते रहते थे। श्री ठाकुर युवाओं को सशक्त करने के कार्य करते थे। राजनीतिक कैरियर के साथ शिक्षा को हमेशा प्राथमिकता देते थे। क्योंकि वे एक बहुत गरीब घर से आते थे, और उन्होंने बड़ी ही मुश्किल से शिक्षा प्राप्त की थी, इसलिए उनका यह जोर रहता था कि समाज के गरीब लोगों को शिक्षा मिलनी चाहिए इसके लिए सरकार को जो भी काम या जो भी प्रयास करने पड़े उसे करना चाहिए। लोकनायक कर्पूरी ठाकुर वही थे जिन्होंने शिक्षा पद्धति में ऐसी सोच बने की स्थानीय भाषा में भी शिक्षा ग्रहण करें।
अपने जवानी के दिनों में जननायक Karpoori Thakur भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिए थे और उन्होंने कई ऐसे प्रयास किए थे की जिससे अंग्रेज भारत से चल जाए। उसके बाद दौर आता है इमरजेंसी का, इमरजेंसी के दौरान भी उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया था, बता दे कि उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू कर दिया था। इसके बाद कई बड़े छोटे या पत्रकारों को बंधक बनाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया था, इसका पूरे भारत में विरोध हुआ और इस विरोध का हिस्सा कर्पूरी ठाकुर भी रहे थे।
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